यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 9 फ़रवरी 2020

हमरे दुअरा कै..... अवधी

हमरे दुअरा कै इनरा सुखाये लगल
तुलसी दुअरा कै भी मुरझाये लगल
बाग़ जंगल कटल  जात अइसै हवै
माटी माटी औ ढेलवा भुखाये लगल

बिन पनियों के गड़ही बुढ़ाए लगल
सगरो तलवा तलइया झुराए लगल
अपने स्वारथ में मनई है आन्हर भयल
बड़की नदियो यहर दुबराये लगल

भइया काटा न पेड़वा न पाटा कुआँ
नाहित सगरो जिनिगिया हो जाई धुआँ
पानी पेड़वा बचावा करा कुछ जतन
नाहित सब कुछ बिलाई इहाँ औ वहाँ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें