हमरे दुअरा कै इनरा सुखाये लगल
तुलसी दुअरा कै भी मुरझाये लगल
बाग़ जंगल कटल जात अइसै हवै
माटी माटी औ ढेलवा भुखाये लगल
बिन पनियों के गड़ही बुढ़ाए लगल
सगरो तलवा तलइया झुराए लगल
अपने स्वारथ में मनई है आन्हर भयल
बड़की नदियो यहर दुबराये लगल
भइया काटा न पेड़वा न पाटा कुआँ
नाहित सगरो जिनिगिया हो जाई धुआँ
पानी पेड़वा बचावा करा कुछ जतन
नाहित सब कुछ बिलाई इहाँ औ वहाँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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