यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

मान लिया मैं मर जाऊँगा


मान लिया मैं मर  जाऊँगा
फिर भी ज़िंदा रह  जाऊँगा
तेरे अधरों  से ही  सही मैं
मेरे     गीत    सुनाऊँगा

मैं मर  कर भी  अमर रहूँगा
अपना किस्सा खुद ही कहूँगा
मेरे गीत  कहानी  जब  तक
तब तक  कैसे  भला  मरुंगा

गीतों पर मेरे  कितने ही झूमेंगे
जाने कितने  गोल-गोल ही घूमेंगे
मेरे गीतों को सुन करके मस्ती में
प्रिय के नाजुक हाथों को बस चूमेंगे

मेरे  दर्द  जमाने  को  खुशियाँ देंगे
ढल करके गीतों में  गलबहियाँ देंगे
गर हों मेरे दर्द खिलौनें जग भर के
इससे खुशी क्या जग भर को खुशियाँ देंगे


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  

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