यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

कर्ण कृष्ण संवाद


हे वासुदेव मेरे  हिस्से ही
इतने दुःख क्यों  आये हैं
अब तक केवल ताने–ताने
बस तिरस्कार ही पाये हैं

जन्मते ही माता ने  त्यागा
क्यों मेरा क्या अपराध रहा
क्षत्रिय कुल में ना पला तो मैं
क्या यह मेरा  अपराध रहा

गुरुद्रोण ने शिक्षा ना  कर दी
था शूद्र सो बस दुत्कार दिया
दी परशुराम  ने   शिक्षा पर
अंततः उन्होंने  शाप  दिया

मैंने  सेवा  मन  से   की थी
क्या यह भी था अपराध किया
कोई  बैर  नहीं था  कृष्णा से
फिर भी उसने अपमान  किया

मैंने तो जीवन  भर अपना
परहित में सब कुछ दान किया
फिर भी इस निष्ठुर जग ने तो
सदा  मेरा  अपमान किया

मैं जीवन  भर  दुत्कार   सहा
केवल  दुर्योधन  मुझे  गहा
मैं उसका  साथ  निभाऊंगा 
फिर इसमें क्या गलत कहा

हे कर्ण, जो बातें कहते हो
जिन हालातों में  रहते हो
उसका कुछ भान मुझे भी है
जितना कुछ भी तुम सहते हो  
 
पर मेरा  भी  जीवन  देखो
दुःख  का ही पूरा  लेखा है
६ बहनों के मर  जाने पर
मेरा जन्म हुुुआ भी धोखा है

कारागृह में मैं जन्म  लिया  
लेते ही जन्म मैं बिछड़ गया 
ना स्तनपान मिला  माँ का
जन्मा क्षत्रिय औ ग्वाल भया 

इक जन्मा कुल दूजे में पला 
मामा की आखों ही में गड़ा 
बैरी  बहु जन्म से मेरे थे
मुझको हर पग थी मौत घेरे

जब शिक्षा की उमर थी मेरी
गउवों संग बन–बन खेला था
गुरुकुल में जब सब लोग पढ़े 
गोबर माटी संग  खेला  था

मुझको मेरा प्रेम ना  मिला
बैरी  निकला अपना  साला
अपनी जननी से जीवन भर
था दूर रहा  उसका   लाला

मैंने  अपनों  की रक्षा में
एक नाम भगोड़ा था पाया
इतना सहने करने भी पर
सब दोष मेरे सर ही आया

तुमको तो शूर वीर जग में
अनुपम दानी है कहा गया
तुमको तो मन का प्रेम मिला
उत्कृष्ट मित्र है कहा गया

सबके अपने, अपने दुःख हैं
ये युद्ध है  होना  होगा  ही
जो  जैसा   वैसा  भोगेगा
जो होना  है  वो होगा  ही

अन्याय हुआ इसका मतलब
अन्याय के साथी हो जाओ
हे कर्ण धर्म की ध्वजा धरो
इतिहास बदलने आ  जाओ

हे केशव  सब  माना  मैंने
पर मेरा  निर्णय  स्थिर है
इतिहास  तुच्छ है मेरे लिए
मित्रता मेरी चिर थी चिर है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत     

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