शब्दों के बिन अब
होगा संवाद प्रिये
प्रेम समर्पण होता
नहीं विवाद प्रिये
शब्द अखरते हैं
अक्सर उदात्त प्रेम में
मौन श्रेष्ठ है बस
कर लो अनुवाद प्रिये
करुणा की भी अपनी भाषा
होती है
प्रेम की इक
मर्यादित भाषा होती है
शब्दों की वैशाखी अब
तुम मत लेना
आखों की भी मोहक
भाषा होती है
प्रेम समझने चले भी
जितने परे हुए
जिनको ना विश्वास
प्रेम से डरे हुए
केवल ये विश्वास का
रिश्ता है प्यारे
टिके वही जो डोर हैं
इसकी धरे हुए
अन्तस् से अन्तस् का
रिश्ता होता है
बाहर वाला रिश्ता
अक्सर खोता है
प्रेम कभी भी जिस्मों
का संबंध नहीं
प्रेम रूह से
रूह का नाता होता है
पवन तिवारी
संवाद- ७७१८०८०९७८
अणु डाक-
poetpawan50@gmail.com
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