मीत मिले हैं विरह
गीत बन
किससे निभायें प्रीत
के बंधन
अपनों में विश्वासघात की
चली हुई है रीत सी
अनबन
आश्वासन मौके पर टूटे
गुब्बारे विश्वास के फूटे
एक जिस्म दो जान के
रिश्ते
स्वार्थ बस पल भर
में छूटे
वर्षों के अनुभव से देखा
संबन्धों पर शक को
फेंका
विश्वासों की हुई
दलाली
चला भरोसों का भी ठेका
नैतिकता का तेरा
मेरा
झूठा अहमक किया
घनेरा
घिरा हुआ हूँ फिर भी
अकेला
झूठी मुस्कानों का सवेरा
बिना लड़े कुछ जीत
गये हैं
कुछ लड़ने में रीत गये हैं
एक बार बस लब खोला
था
सच के कारण मीत गये हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें