क्या कहें क्या ना कहें
अब क्या कहें
जिंदगी हँसना कि रोना
क्या कहें
प्रेम जो माँगे समर्पण हर घड़ी
उसमें फिर पाना कि खोना
क्या कहें
गृह युद्ध के जब बढ़ रहे
आसार हों
ऐसे में जगना कि सोना
क्या कहें
जब बुझानी आग थी तब चुप
रहे
बाद फिर रोना कि धोना
क्या कहें
अर्थ से पहले भी उसका अर्थ था
अब उसे मद या कि टोना
क्या कहें
पवन तिवारी
संवाद - 7718080978
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com
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