जितनी रहे अपेक्षा ,
उतना ही मिले दुःख
बिन अपेक्षा के स्वयं , आकर मिले सुख
तेरा , मेरा , इसका , उसका ,
अपना , पराया
बिन सोचे पथ पर बढ़े
तो, हँसता रहे मुख
अपने पराये के चक्कर
में, हम चक्कर बन जाते
चलते - चलते अपनों
के कारण भी हैं गिर जाते
छोड़ आस जग की निज
पौरुष, पर विश्वास रहे
फिर इक दिन जग चल
पड़ता तुम जिधर-२जाते
हो स्पष्ट लक्ष्य जीवन
में , निज विश्वास रहे
इधर - उधर की बातों
पर ना तनिक भी ध्यान रहे
रहे पराया या अपना
कहता हर कोई कुछ ना कुछ
पर दृढ़ रहे
, रहे बढ़ते तो, दुश्मन खेत रहे
हो महान यदि लक्ष्य
तो बहु बाधाएँ आती हैं
लगता है बढ़ते – चलते
, साँसें रुक जाती हैं
कभी - कभी ऐसा लगता है काम नहीं होगा
पर दृढ़ता के
आगे बाधा मार खाती है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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