गर्मी में चन्दन हो जाऊँ
प्रेम तुम्हारा जो मैं पाऊँ
आती हो सोच में जब तुम
खिलकर मैं पंकज हो जाऊँ
प्रेम में कितनी शक्ति है
प्रेम में कितनी भक्ति है
रोगशोक का नाश करे
वो
प्रेम वो मन्त्र वो
सूक्ति है
मुरझाये वो मुख को
खिला दे
हँसते - हँसते गरल पिला दे
जनम - जनम के हों
बैरी जो
ऐसों को भी प्रेम मिला दे
तुमसे प्रेम हुआ है
जब से
ये सब जाना माना तब
से
सच्चे पथ पर अब आया
हूँ
जाने भटक रहा था कब से
अब निज में खोया
रहता हूँ
सोये में जगता रहता हूँ
दिवस रैन सब एक लगे हैं
प्रतिक्षण प्रेम लोक
रहता हूँ
प्रेम ने मुझको पावन
कर दिया
वर्षा में मुझे सावन कर दिया
ऋतु वसंत सा लगे है जीवन
अवध सा उर मनभावन कर
दिया
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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