अपने जीवन का मैं ही उपन्यास हूँ
मैं लिखा ना गया यूँ अनायास हूँ
खूब अपमान ठोकर बहुत कुछ मिला
अपनी सारी व्यथाओं का मैं व्यास हूँ
खुद ही खुद से यहाँ
तक मैं खुद आया हूँ
गम मिला अपनों से खुशियां खुद लाया हूँ
कोई किसको सफल होने देता नहीं
अपने हिस्से का खुद
छीन कर पाया हूँ
इसलिए निंदा से मैं
तनिक ना डरा
बस बढ़ता चला पथ
पर आगे बढ़ा
रोके, टोके बहुत, और डराये भी कुछ
पर बढ़ा मैं सफलता के मानक गढ़ा
सबकी निंदा ने ही मुझको जिंदा किया
काम जो भी किया
बस चुनिंदा किया
फिर उड़ा पूरे दम और साहस से मैं
जीता फिर जिन्दगी का परिंदा किया
जब तलक चुप रहा सबने दोषी कहा
सबके ताने सुना, सबकी बातें सहा
धैर्य जब चुक गया और लब खुल गया
सर झुके सबके कोई
न उत्तर रहा
पवन तिवारी
संवाद –
७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com
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