सारे विश्वास
स्वार्थ की बलि चढ़ गये
दोस्त सब दोष मे रे
ही सर मढ़ गये
सबको अपने हित सर्वोपरि
लगे
जाने कितने बहाने
यूँ ही गढ़ गए
जिनका दावा था सबसे
निकट मेरे हैं
जो कहें हर कदम ,
साथ हम तेरे हैं
साथ देने का सच में
समय आया तो
वे दिखे ना
कहीं गैरों के
घेरे हैं
थोड़े मशहूर जब हम यूँ ही हो गये
उनकी आँखों के फिर
नूर हम हो गये
मंडराने लगे पास गिद्धों
सा वे
नोचने के लिए
साथ फिर हो गये
खेल अपने समझ में भी
आने लगा
दौर वो नजरों में
आने - जाने लगा
फिर तो नज़रों से वो
बस फिसलते गये
दौर मेरा सुखद और
आने लगा
कुछ बचे थे , बुरे दौर में साथी जो
यूँ संभाले थे मुझको
समझ थाती जो
ऐसों को साथ ले मैं
चला फिर सफर
यूँ लगा जल पड़ी थी
बुझी बाती जो
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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