ह्रदय का दर्द बढ़कर
असह्य जब हुआ
गीत के रूप में वो
प्रकट तब हुआ
ये जो जग दीखता वैसा
है ये नहीं
गीत सुनकर बहुत ही प्रफुल्लित हुआ
लेके अपना हुनर घूमता मैं
हुआ
बस्ती–बस्ती नगर ना
किसी का हुआ
खीझा और थक गया दर्द
भी बढ़ गया
ऐसे में गीत का तब
ही उदभव हुआ
दिल ने पूछा हुनर
असफल क्यों हुआ
पारखी ना मिला हुनर
बेबस
हुआ
बेचूँगा दर्द तब ये किया फैसला
गीत लाया मैं बाज़ार
दुःख भी हुआ
जग है दुःख से भरा
आभाष हुआ
दर्द जो गीत बन जग
दुलारा हुआ
गीत बिकने लगा थोक
के भाव से
दर्द जब गीत बन करके
साया हुआ
दर्द मेरा रहा
गीत उनका हुआ
गीत समझें जो वो तो
बुरा क्या हुआ
आख़िरी सांस तक
दर्द ही गाऊँगा
जग का मेरा यही हमसफर है हुआ
जो हुआ सो हुआ समझो
अच्छा हुआ
मेरा घर पल गया सबसे
अच्छा हुआ
अब तो मैं रोज ही दर्द हूँ बेंचता
बीबी बच्चे हैं खुश बेचकर
खुश हुआ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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