रहूँ मैं दूर अक्सर टोकता है
कि खुद ही पास जाकर भोगता है
जुबाँ से तो दुआ वो
दे रहा है
मगर दिल से फ़कत वो कोसता
है
जुबाँ से कह दिया उसका भला हो
मगर क्या दिल भी ऐसा
सोचता है
कहा है यार उसको जब
से अपना
जहर ख़ुद उसके दिल में
घोलता है
उसे सिखलाया मैंने बोलना क्या
कहूँ कुछ तो मुझे ही बोलता है
हुई थी दोस्ती सच की वज़ह से
कहे अब सच “पवन” तो
रोकता है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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