लिखते हम हँसना गाना
पर अन्दर से हम रोते हैं
लिखते हैं हम प्यार मोहब्बत
मन दुःख से घिंघियाते हैं
जो अपनी सच्ची हालत है
उसको हम झुठलाते हैं
कभी-कभी कोई कह दे सच
नाहक नाक फुलाते हैं
इतनी पीड़ा लेकर भी हम
झूठ मूठ का गाते हैं
होता कुछ भी नहीं ठीक पर
है सब ठीक बताते हैं
सामने परिचित आते देख के
ज़बरन हम मुस्काते हैं
रोना चाहे अन्दर से मन
बाहर जबरन गाते हैं
हँसते-हँसते रो देते हैं
मन- ही मन गरियाते हैं
अच्छा हुआ तो हमने किया है
बुरे को भाग्य बताते हैं
झूठ मूठ के आडम्बर में
खुद को खुद ही सताते हैं
झूठी शान की खातिर जग में
खुद को ही तड़पाते हैं
बाहर झूठ रहे सच भीतर
घुट-घुट के मर जाते हैं
पवन तिवारी
सम्पर्क –
७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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