तेरे उर का पटुक है उड़ा जा रहा
हुआ जाता है पंकज सा यौवन तेरा
देख कर मेरा अंतस बहा जा रहा
अधरों से मधुरिमा के जो स्वर फूटे हैं
जाने कितने ही शिष्टों के हिय लूटे हैं
अलकों से पलकों तक छाई जो रम्यता
देख कितनों के उन्मत्त सर टूटे हैं
तेरा यौवन है ऋतुओं में मधुमास सा
रूप तेरा शची मंजुता पाश सा
तुझको सुभगा, सुनयना या
सुमुखी कहूँ
तेरा प्रति अंक अनुपम आभास सा
चलना चाहूँ तेरे संग मैं प्रेम पथ
पथ से चलके तेरे द्वार पहुंचे ये रथ
मैं तेरा तूँ मेरी हो सदा के लिए
है प्रिये अपना इतना सा बस मनोरथ
पवन तिवारी
सम्पर्क –
७७१८०८०९७८
poetpawan502gmail.com
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