दृष्टि में आयी तुम
रति पथिक हो गया
राग प्राचीन सा अभिलषित हो गया
मुझको अनुरक्ति का
पाहुर क्या मिला
चित्त मेरा कलापी मुदित हो गया
स्वप्न में रात भर हम निहारा किये
तुम पे ही अपना सब
वारा न्यारा किये
स्वप्न टूटा तो थी खाट टूटी हुई
फिर भी उर को उछलता गुबारा
किये
तुम ही हो मेरे उर
के सभागार में
उर निमज्जित तुम्हारे ही है प्यार में
कैसे विश्वास तुमको दिलाऊं प्रिये
बजती नूपुर सी हो
हिय के आगार में
हिय रहा ना हमारे ही व्यवहार में
भ्रष्ट हो जाए ना कहीं आचार में
लो बचा मुझको तुम इस
अनाचार से
इसका हल एक बस अपने
अभिसार में
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com
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