यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 1 मई 2018

रति पथिक




















दृष्टि में आयी तुम रति पथिक हो गया
राग  प्राचीन  सा  अभिलषित  हो गया
मुझको  अनुरक्ति  का पाहुर क्या मिला
चित्त  मेरा  कलापी  मुदित  हो  गया

स्वप्न  में रात  भर  हम निहारा किये
तुम पे ही अपना  सब वारा न्यारा किये
स्वप्न  टूटा  तो  थी  खाट  टूटी  हुई
फिर  भी  उर को उछलता गुबारा किये

तुम  ही हो  मेरे उर के  सभागार में
उर  निमज्जित तुम्हारे ही है प्यार में
कैसे  विश्वास  तुमको  दिलाऊं  प्रिये
बजती नूपुर सी हो हिय के आगार में

हिय  रहा  ना हमारे ही  व्यवहार  में
भ्रष्ट  हो  जाए  ना कहीं  आचार  में
लो बचा  मुझको तुम इस अनाचार से
इसका हल एक बस अपने अभिसार में

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com

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