प्रात आया सुबह तो महक सी गयी
चिड़ियों के कलरव से चहक सी गयी
धूप पाकर प्रकृति मुस्कराने लगी
प्रात आया धरा तो लहक सी गयी
भोर के शोर से उल्लसित मन हुआ
इक नयी आस जीवन में जग सी गयी
एक नव वेग से जग चल है पड़ा
देखकर ये निशा सहम सी गयी
सुमन हैं खिल गये गान भ्रमरों का है
दृश्य यूं देख धूप बहक सी गयी
जो दिवाकर की पहली किरण आ पड़ी
ये धरा नव वधू बनके सज सी गयी
देखा जो सूर्य को खिलखिलाते हुए
थी निराशा जो मन में वो मर सी गयी
देखा जो सूर्य को खिलखिलाते हुए
थी निराशा जो मन में वो मर सी गयी
नव ऊर्जा जगी इस नये वार पर
नकारात्मकता सूखे विटप सी गयी
पवन तिवारी
सम्पर्क- ७७१८०८०९७८
Poetpawan50@gmail.com
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