बाग़-बगइचा,मेला-ठेला,गुल्ली-डंडा,खूब खेला
भयल बियाह आइगै मेहरी,कुल भुलायगै रेलम-पेला
बाप के पइसा से खइली रसगुल्ला,चाट,समोसौ भी
अपनी कमाई नून-तेल, घर खरचै में रेलम-रेला
गाल पिचकिगै अँखियों धंसिगै,अठ्ठइसै में गए बुढाय
बियाह-बियाह चिल्लात रहला,भयल बियाह त अब झेला
घर गिरहस्ती मेहरी पालब, सबके बसिकै बाति है नाय
गिरहस्ती कै तिकड़म है ई तूँ का समझा खोमचा-ठेला
मुँह डोलाइब अउर घर चलाइब दोनहुन में है बहुतै अंतर
तुहीं नाय सबकै इहै हालि है जे गिरहस्त सब रेलम रेला
मेहरी लड़िका वाले जेतना,सबकै हालि समानै है
का पछिताये होई अब ,जब सब झेलत है तूंहूँ झेला
जमि के आपन कर्म करा सब निक्कै होई
सच होई सपना तोहार सब, कहत हई सझौंती बेला
पवन तिवारी
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