वक्त बिन वक़्त का
घाव भरता नहीं
कितना भी तुम सिलो
ज़ख्म सिलता नहीं
वक्त विपरीत गर श्रम
फलित ही न हो
काम होकर भी परिणाम
मिलता नहीं
काल हो गर बुरा
बेवज़ह रोग हो
वैद्य खोजे बहुत रोग
मिलता नहीं
वक़्त की मार तो होती
ऐसी भी है
सामने होके भी हमको
दिखता नहीं
एक तीली में जो दीप
जल जाता था
अब कई तीलियों से भी
जलता नहीं
फोन के बजने से था
परेशां बहुत
दिन में इक बार "पवन” बजता नहीं
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें