दोस्त जिनको तुम अब
तक समझते रहे
दुश्मनी आड़ में वे
ही करते रहे
जिनको समझा था तुमने
प्रशंसक हैं वे
मुखर आलोचना वे तो
करते रहे
जिनकी खातिर किये
कोशिशें थे बहुत
जिनकी खातिर लड़े थे
तुम अपनों से भी
जिनपे तुमको भरोसा
हुआ था बहुत
जब वो टूटा तो आँसू
गिरे भी बहुत
जैसा हम चाहते वैसा
होता नहीं
जैसा हम सोंचते वो
भी होता नहीं
अपनी सोंचो के
विपरीत भी सोंच है
मानते इसको तो दुःख
होता नहीं
जो भी होगा उसे भोग
लेंगे सहज
कर्म के पथ पर बढ़ते
रहेंगे सहज
फिर तो आनन्द आएगा
स्व ही सहज
वरना दृग में भी
आयेंगे आँसू सहज
पवन तिवारी
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