गांव
का केवल नाम रह गया
पेट
की खातिर लौंडे भागे
बूढ़ों
का आवास रह गया
नादानी
का काम रह गया
गांव
को तो शहर खा गए
गांव
में अपमान रह गया
जिसको
शहर की राह न सूझी
मजबूरी
में ही गांव रह गया
गांव
में जाकर गांव को देखो
गांव
तो बस बेजान रह गया
कोल्हू, छप्पर कुआँ गया
भाई
भी अब गैर हो गया
बगल
में ही पटीदार हो गया
सब
मतलब का यार हो गया
रिश्तों
का व्यापार हो गया
कभी
तो देखो गांव में जाकर
गांव
भी अब परेशान हो गया
नाच
गई आर्केस्ट्रा लाया
बाजे
को कोई पूछे ना
सब
पूछे हैं डीजे लाया
गांव
शहर के क्लोन हो गए
अधकचरे
अरमान हो गए
गांव
में जाकर गांव से मिलना
ठाले
बैठे काम हो गए
गाय
भैंस की हुई विदाई
गोबर
कहां से होगा भाई
गोबर
का कुछ काम नहीं है
डाई
यूरिया से होय बुवाई
गाँव
में जाकर देखो गाँव
कुछ
दिन रह कर मजा भी ले लो
फिर
पूछूंगा कैसा गांव
यह
मत सोचो बहुत हैं सीधे
होती
है हर जगह लड़ाई
पेड़
की खातिर मेड़ की खातिर
हिस्सा
बखरा खेत की खातिर
माई
के गहना के खातिर
गोयड़
वाले खेत के खातिर
बंटवारा
जब होवे लागे
हंडा
लोटा बटुली की खातिर
करते
हैं बंदूक से खातिर
कहीं
न ससुराल हमका ठग ले
होय
लड़ाई ढेर की खातिर
शहर
में रहकर गांव जो लिखते
वे
हर दिन और शाम हैं बिकते
बेइज्जत
होकर गांव से भागे
वही
अब सुंदर गांव है लिखते
गांव
तो अब वीरान हो गए
घर
जो थे मकान हो गए
कविता
वाले भोले गांव
वहां
भी अब शैतान हो गए
बहुत
से अब बेईमान हो गए
ठेकेदार
को कोसने वाले
ही
अब ठेकेदार हो गए
सड़क
किनारे खेत थे जितने
सब
के सब बाजार हो गए
खादों
वाला अनाज खाकर
गांव
भी अब बीमार हो गए
खूब
हो रही पैदावार
डाई
यूरिया का है प्यार
बीमारों
की बड़ी तादाद
बढ़
गया डॉक्टर का व्यापार
शहर
में आकर गांव की बातें खूब करते हैं
ऐसा
लगता है जैसे यह गांव पे मरते हैं
मां
का जब भी फोन है आता अगले महीने आते हैं
10 दिन
और रुक जाओ सुनकर कुढ़ जाते हैं
सच तो यह है गांव नहीं अब प्यारा है
गांव भी देखो हालातों का मारा है
चाहता है घर गांव गांव ही बना रहे
दे दो फिर रोजगार गांव रोजगार का मारा है
पवन तिवारी
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@gmail.com
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