तीन मुक्तक
कल तलक जो खास थे दुश्वार हो गये.
वो ही हमारे दरमियाँ दीवार हो गये.
कल तक जो भाई ,चचा और परिवार थे.
सौदा हुआ जो स्वार्थ का
पटीदार हो गये .हुस्न की बात चली,ऐतराज किये सब लोग .
शरीफ सन्त शहर के हो गये सब लोग .
हुस्न जब सामने हुआ नाज़िल.
शरीफ सन्त फिसल गये सब लोग.
हुस्न को भला-बुरा कहते हैं जो लोग
सबसे ज्यादा फ़िदा हैं हुस्न पे वो लोग
अंधेरी रात में मिल जाये हुस्न गर उनको
सुबह तक जिन्दा नहीं छोड़ेंगे ये लोग
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