उसको चढ़ा नशा है जी प्यार की तरह
पानी परोसती है तो शराब की तरह
सरकार की तरह सुनता नहीं ये प्यार
करता है फ़क़त अपनी थानेदार की तरह
सरकार की तरह सुनता नहीं ये प्यार
करता है फ़क़त अपनी थानेदार की तरह
उसकी अदा का भी कोई जवाब नहीं है
इनकार भी करती है तो इकरार की तरह
पत्नी कि प्रेमिका,कि दोस्त है कि क्या
वो डांटती भी है तो माँ - बाप की तरह
मिलता हूँ जब भी उससे,बस खो सा जाता हूँ
मुझको दिखाई देती है वो ख्व़ाब की तरह
अपने दुखों की हर ख़बर कुछ यूँ छुपाती है
लगती है शक्ल उसकी अखबार की तरह
अपनों ने उसके साथ में व्यवहार यूँ किया
हर रिश्ते को अब समझे वो बाज़ार की तरह
कुछ इस अदा से कहती है मैं मान लेता हूँ
वो झूठ भी कहती है सत्यवान की तरह
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