यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 2 अप्रैल 2017

और लबों पर रंग दे बसन्ती गाने थे













आज ही नहीं दीवाने हैं
तब भी तो दीवाने थे
आज तो जो हैं
लड़की के दीवाने हैं  
चाल देखकर भ्रम होता है
मर्द या जनाने हैं
इनके लबों पर ईलू वाले गाने हैं
वो तो भारत माता के दीवाने थे
और लबों पर रंग दे बसन्ती गाने थे
बिस्मिल और आज़ाद भगत सिंह
क्रांतिकारी दीवाने थे
आजादी मिलने के कारण
उनके कारनामें थे 

poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क- 7718080978

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