यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 6 मार्च 2017

तुम मिली तो जिन्दगी भी ख़ूबसूरत हो गई.
























सोंच ही रहा था कि जिन्दगी कितनी बेतरतीब हो गई.
कि तभी तुम मुस्कुराई और ग़ज़ल हो गई.

सोंचा न था कभी जिन्दगी ऐसी भी हो सकती है. 
तुम मिली तो जिन्दगी भी ख़ूबसूरत हो गई. 

न हुई थी मोहब्बत तो पर्दे में रहा करती थी. 
मोहब्बत क्या हुई कि सरे बाज़ार बेपर्दा  हो गई.

बड़े शरीफ बने फिरते थे जमाने में.
ख़ूबसूरती जरा क्या देखी शरारत हो गई. 

ये मोहब्बत - वोहब्बत  क्या है और भी काम हैं जमाने में. 
जब हो गई मोहब्बत बेसाख्ता बोले कुछ करो यारों इन्तहा हो गई.

poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क -7718080978

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