प्यार पर बात करना सहज है मगर
देश पर बात करना समझ -बूझकर
प्यार तो दो दिलों का ही बस खेल है
देश का खेल तो करोड़ों आन है
प्यार में मर मिटेंगे तो दो जान ही
देश पर तो शहीदों की गिनती नहीं
प्यार दो लोगों का आपसी प्रेम है
देश से प्रेम १८५७ है
मानता हूँ कि पावन बहुत प्रेम है
प्रेम का रूप राधा व मीरा भी है
देश से प्रेम उद्दात और श्रेष्ठ है
चंद्रशेखर भगत सिंह व सुखदेव है
इनकी पावनता गंगा से कम है नहीं
देश के गर्व हैं देव से कम नहीं
प्रेम करना ही है देश से फिर करो
ऐसे ही प्रेमियों की जरूरत भी है
लैला मज़नू से बनता नहीं देश है
देश बनता है तो घोष और बोस से
प्यार में मरना यदि है जरुरी सनम
तो मर जाइए फिर वतन के लिए .
poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क- 7718080978
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