जिसको
आवाज़
दी
वो
सुना
ही
नहीं.
मेरी
खामोशियों
को
सुनेगा
वो
क्या?
जिससे
मैंने
किया
प्यार
समझा
नहीं.
दूसरा
फिर
कोई
मुझको
समझेगा
क्या?
भावनाएं
जिसे
पढ़ना
आया
नहीं.
प्यार
सच्चा
किसी
से
करेगा
वो
क्या?
प्यार
करना
है
आसाँ
निभाना
नहीं.
बिन
विश्वास
रिश्ता
निभा
कोई
क्या?
तन की
चाहत
हवस
प्यार
है
ही
नहीं.
तन की
चाहत
कभी
प्यार
समझा
है
क्या?
रूह
तक
फिर
पहुंचना
भी
आसां
नहीं.
बिन
समर्पण
किसी
को
मिला
प्यार
क्या?
हो समर्पण तो कुछ भी असम्भव नहीं.
हैं समर्पण के आधीन भी देवता
कृष्ण की भार्या रुक्मिणी हैं तो क्या
जग में राधे-किसन की ही धूम सदा
पवन तिवारी
poetpawan50@gmail.com
संवाद - 7718080978
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