वो थी तो घर था.
वो छोड़कर गयी तो मकां हो गया .
घर तो था मगर घर नहीं था .
जिससे था अब वो ही नहीं था .
बस एक घर की तलाश में .
रोज कई मकान देखता हूँ .
तेरे क़दमों की आहट से घर हरा हो जाता है.
और तेरे घर में आने से घर मंदिर हो जाता है .
बेटा जब भी आता है घर खुशियों से भर जाता है.
पर बेटी जब घर आती है घर मंदिर हो जाता है.
मुझे कई बंगले,महल,मकान आलीशान मिले.
बहुत से लोग मेरी तरह ही परेशान मिले.
बहुतों को बहुत से ऐशोआराम भी मिले .
जो एक ख्वाहिश थी घर की,न मुझे मिले न उन्हें मिले .
मैं जानता हूँ तुम मकान खरीद सकते हो.
घर खरीद के बताओ तो जानूं .
वों नादाँ हैं जो कहते हैं हम घर खरीदेंगे.
उन्हें मालूम नहीं घर खरीदे नहीं बनाये जाते हैं.
जो मकां को घर बता के बेचते रहे .
वो खुद ही पूरी उम्र घर खोजते रहे .
poetpawan50@gmail.com
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