यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 4 सितंबर 2016

जिन्दा होके भी नहीं जिन्दा हूँ !

जिन्दा होके भी नहीं जिन्दा हूँ.
 पर कटा जिसका वो परिंदा हूँ .
 सच जो कहने की मुझे आदत थी.
 इसलिए ही नहीं शर्मिंदा हूँ.

मैं नहीं चाहता मशहूर होना .

मेरी ख्वाहिश नहीं खुर्शीद होना.
मेरी इतनी है राम से विनती
मेरी पहचान हो आदमी होना


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