वो नगमा आप को सुनाता हूँ.
ख़्वाब देखे जो खुली आखों से,
वो किस्सा आप को सुनाता हूँ.
सामने दुश्मन हुआ है हाज़िर,
गोलियाँ उसपे मैं बरसाता हूँ.
मेरे सीने में लगी है गोली,
और रंग दे बसंती गाता हूँ.
सीने के बल लेटकर गोलियां चलाता हूँ.
दुश्मन के फौज की मैं धज्जियाँ उड़ाता हूँ.
आख़िरी साँस मुँह को आई है.
और वन्देमातरम गाता हूँ .
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@mail.com
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