जटायु के वंशज से एक दुर्लभ भेंट
पिछले महीने मैं लम्बे समय के बाद गाँव गया .
घर , आस-पास, मुहल्ले का चक्कर लगा आया .
पर मन थोड़ा खिन्न सा था , कुछ जैसे छूट रहा था,
कुछ खालीपन या जैसे कुछ भूल रहा था ,
कोशिश किया याद करने की ,
पर फेल रहा, पुरानी यादों में जाकर
पुरानी संस्कृतियों को खोजने में ,
कई बार सोंचा बाबू जी से पूंछू
कि घर और आस - पास कुछ ऐसा
क्या था जो अब नहीं है ,
अगले दिन मैं भतीजे के साथ
खेत देखने गया , दस साल का भतीजा अचानक
चिल्लाया , चाचा वो देखो, इधर नहीं , उधर टीले पर
उसकी चिल्लाहट में एक आश्चर्य और खुसी थी
मैंने टीले की तरफ देखा - और सहजता से कहा - हाँ गिद्ध है
मेरे निरुत्साह उत्तर से वह दुखी था .
खीझ कर वह बोला - आप ने इससे पहले गिद्ध देखा क्या ?
मैंने कहा हाँ - अक्सर देखता था ,
अपने घर के सामने पीपल के पेड़ पर , उसने तपाक से कहा
अपने घर के सामने और पीपल
क्या चाचा मुझसे ही झूठ ,
हाँ मेरी किताब में है , पेड़ पर बैठा
पर वो तो फोटो में है पर
पता है ये एकदम असली गिद्ध है
पर सुन्दर नहीं है ,
दादा जी के रामायण में ,
रंगीन गिद्ध है, उसमें राम भी हैं
मेरे मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला
मुझे मेरे खालीपन, खिन्नता और
कुछ छूटने का उत्तर मिल गया था ,
मैं उसका हाथ पकड़, घर की ओर बढ़ा .
मेरे अचानक चलने से वह चकित था
क्या हुआ चाचा ? क्या हुआ चाचा ?
मैनें कुछ गलत कहा , उसने कहा,
मैंने बोझिल मन से ''ना '' में सिर हिलाया
और घर आ गया, फिर कई दिन अकेले
मैं उस टीले के पास गया , पर वह नहीं मिला
इस बीच मैं जटायु जो रामायण की तस्वीर में
राम के साथ कई बार देख चुका था
मुंबई लौटने से पहले,
मैं अपनी साझा संस्कृति के
इस महान द्योतक से मिलना चाहता था ,
मैं उससे मिलना चाहता था,
जिसने मेरे बचपन को आश्चर्य, कौतूहल,
कहानियों और ज्ञान से समृद्ध किया
सुबह - सुबह पीपल की सबसे ऊँची डाली पर
इन्हें शोर मचाते, पंख फड़फड़ाते देखना
और फिर आसमान में पंख फैलाये
बादलों के पास उड़ते देखना
अम्मा से जटायू की सीता जी के लिए
रावण से आत्मघाती युद्ध और स्वबलिदान
और बाबू जी से सम्पाती की वीरता और साहस की कथा
और फिर इनकी ऊँची उड़ान और दूरदृष्टि
इन्होने ही हमें ''गिद्ध दृष्टि '' का सुन्दर मुहावरा दिया.
मुंबई लौटने के दिन नजदीक आ रहे थे,
और मैं लौटने से पहले
महान जटायू के वंशज से
मिलना चाहता था , इसी चाह में
मैं उस जगह गया , जहाँ मेरे बचपन में
वो बूढा श्रद्धेय पीपल रहता था ,
जिस पर शिवरात्रि में पूरा गाँव
नतमस्तक रहता था , उस दिन वो
साक्षात् शिव का स्वरुप होता था
और उसकी सबसे ऊँची शाखा पर
जटायु का अपना घर होता था
पर अब वहां दोनों नहीं थे
मुंबई लौटने से एक दिन पहले
मैंने जटायु के वंशज से मिलने का
आख़िरी प्रयास किया और बढ़ चला
खेत के पास थोड़े से बचे बंजर टीले की ओर
आज वहां भीड़ थी , कौवे थे , कुत्ते थे ,
एक दो सियार भी दूर मडराते दिखे
पर वे नहीं थे जिनसे मैं
मिलने की आस में गया था
मैं टीले से थोड़ी दूर खड़ा
लाश के पास कौवों और कुत्तों की
नूरा - कुश्ती देख रहा था कि
तभी मेरे सिर के ठीक ऊपर से
हरहराते हुए कुछ बड़े डैनें गुजरे
और टीले की सबसे ऊँची जगह पर
चारों दिशाओं में गर्दन घुमाते हुए
चहलकदमी करने लगे,
उन्हें देख , मैं उनकी तरफ लपका ,
वे मुझे देख दो - चार कदम पीछे हुए
मैं रुक गया , उनके कदम भी रुक गये
मैंने अभिवादन की मुद्रा में हाथ जोड़ा
और धीरे से एक पग आगे बढ़ाया
उनके सबसे वरिष्ठ सदस्य ने
गर्दन हिलाकर अभिवादन स्वीकार किया
मुझमें थोड़ी हिम्मत आयी,
मैं एक पग और बढ़ा , वे भी मेरी ओर बढ़े
मैंने कहा मैं आप से मिलने आया हूँ .
जटायु के वंशज एक साथ हँस पड़े
मुझे थोड़ी लज्जा महसूस हुई.
मेरा लज्जित चेहरा उन्होंने शायद पढ़ लिया ,
गिद्धराज आगे बढ़े और गर्दन ऊँची करते हुए बोले-
बोलिए क्यों मिलना चाहते है आप मुझसे -
हमें भी उत्सुकता है कि पहली बार
कोई मनुष्य हमसे मिलने आया है
मैंने तपाक से उत्साह बस बिना सोचे
प्रश्न के अंदाज में पूंछा - आप ने हमारे गाँव को क्यों त्याग दिया ?
गिद्धराज ने गम्भीर होकर कहा -
आप हमारा मजाक उड़ाने आये हैं या दर्द कुरेदने
हमने गाँव का त्याग नहीं किया
बल्कि हमें गाँव ने त्याग दिया
हमारी जीविका के हर साधन को नष्ट कर दिया
मैं चुपचाप सुनता रहा , बीच में एकाध बार
कौवे और कुत्ते ध्यान भंग करते
मैंने अपना थोड़ा ज्ञान बघारा और कहा-
विज्ञान ने बड़ी तरक्की कर ली है
सरकार और विज्ञानी मिलकर गिद्धों को बचायेंगे
सरकार आप की कम होती जनसंख्या पर चिंतित है
आप हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर हैं
गिद्धराज पहली बार ठठाकर हँसे -
बोले अब समझ में आया - तुम क्यों मिलने आये
या तो तुम बेवकूफ आदमी हो या कवि
वरना ऐसी बात नहीं करते , हमें तुमसे सम्वेदना है .
हमारी ये दशा विज्ञान और सरकार की ही देन है
मैं थोड़ा झेंपते हुए बोला - वो कैसे ?
विज्ञान ने ही लोगों को नास्तिक बनाया
वरना बूढा पीपल क्यों कटता
पहले लोग कहते थे पीपल के पेड़ में
भगवान शिव रहते हैं , काटने से पाप लगेगा
वो भाव हटते ही बूढा पीपल मार दिया गया
अचानक एक शाम जब मैं घर लौटा
तो बूढा पीपल अंग - भंग पड़ा था
और हमारा घर तिनकों में इधर उधर बिखरा था
विज्ञान ने बैलों को बेरोजगार किया .
बूढ़ी गाय अब कसाई तक जाने लगी .
हमारा भोजन भी हड़प लिया .
भैंसों और विदेशी वर्णशंकर गायों को खाकर
हमारे न जाने कितने साथी , बन्धु - बांधव
असमय मृत्यु को प्राप्त हो गये
मैंने साहस कर पूंछा ऐसा क्यों ?
गिद्धराज ने आंसू पोंछते हुए कहा-
उनके शरीर में जहर भरा था ,
क्योंकि उनके मरने से पूर्व
ज्यादा दूध, ज्यादा गबरू, ज्यादा उम्र के लिए
उनके बदन में सुई से जहर भर दिया गया.
ये सरकार और विज्ञान ने ही मिलकर किया
जिसे हमारे सीधे -सादे पूर्वजों ने खा लिया
अब गाय माँ, बैल नन्दी,
पीपल शिव और बरगद विष्णु नहीं रहे
और हम जटायु नहीं रहे
अब विज्ञान और सरकार की दृष्टि में
वो जानवर और पेड़ हैं और हम बदसूरत पक्षी
मैं निशब्द था, आखों में गर्म जल था,
जटायु के वंशज से मिलना एक नया मर्मान्तक अनुभव था
पिछले महीने मैं लम्बे समय के बाद गाँव गया .
घर , आस-पास, मुहल्ले का चक्कर लगा आया .
पर मन थोड़ा खिन्न सा था , कुछ जैसे छूट रहा था,
कुछ खालीपन या जैसे कुछ भूल रहा था ,
कोशिश किया याद करने की ,
पर फेल रहा, पुरानी यादों में जाकर
पुरानी संस्कृतियों को खोजने में ,
कई बार सोंचा बाबू जी से पूंछू
कि घर और आस - पास कुछ ऐसा
क्या था जो अब नहीं है ,
अगले दिन मैं भतीजे के साथ
खेत देखने गया , दस साल का भतीजा अचानक
चिल्लाया , चाचा वो देखो, इधर नहीं , उधर टीले पर
उसकी चिल्लाहट में एक आश्चर्य और खुसी थी
मैंने टीले की तरफ देखा - और सहजता से कहा - हाँ गिद्ध है
मेरे निरुत्साह उत्तर से वह दुखी था .
खीझ कर वह बोला - आप ने इससे पहले गिद्ध देखा क्या ?
मैंने कहा हाँ - अक्सर देखता था ,
अपने घर के सामने पीपल के पेड़ पर , उसने तपाक से कहा
अपने घर के सामने और पीपल
क्या चाचा मुझसे ही झूठ ,
हाँ मेरी किताब में है , पेड़ पर बैठा
पर वो तो फोटो में है पर
पता है ये एकदम असली गिद्ध है
पर सुन्दर नहीं है ,
दादा जी के रामायण में ,
रंगीन गिद्ध है, उसमें राम भी हैं
मेरे मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला
मुझे मेरे खालीपन, खिन्नता और
कुछ छूटने का उत्तर मिल गया था ,
मैं उसका हाथ पकड़, घर की ओर बढ़ा .
मेरे अचानक चलने से वह चकित था
क्या हुआ चाचा ? क्या हुआ चाचा ?
मैनें कुछ गलत कहा , उसने कहा,
मैंने बोझिल मन से ''ना '' में सिर हिलाया
और घर आ गया, फिर कई दिन अकेले
मैं उस टीले के पास गया , पर वह नहीं मिला
इस बीच मैं जटायु जो रामायण की तस्वीर में
राम के साथ कई बार देख चुका था
मुंबई लौटने से पहले,
मैं अपनी साझा संस्कृति के
इस महान द्योतक से मिलना चाहता था ,
मैं उससे मिलना चाहता था,
जिसने मेरे बचपन को आश्चर्य, कौतूहल,
कहानियों और ज्ञान से समृद्ध किया
सुबह - सुबह पीपल की सबसे ऊँची डाली पर
इन्हें शोर मचाते, पंख फड़फड़ाते देखना
और फिर आसमान में पंख फैलाये
बादलों के पास उड़ते देखना
अम्मा से जटायू की सीता जी के लिए
रावण से आत्मघाती युद्ध और स्वबलिदान
और बाबू जी से सम्पाती की वीरता और साहस की कथा
और फिर इनकी ऊँची उड़ान और दूरदृष्टि
इन्होने ही हमें ''गिद्ध दृष्टि '' का सुन्दर मुहावरा दिया.
मुंबई लौटने के दिन नजदीक आ रहे थे,
और मैं लौटने से पहले
महान जटायू के वंशज से
मिलना चाहता था , इसी चाह में
मैं उस जगह गया , जहाँ मेरे बचपन में
वो बूढा श्रद्धेय पीपल रहता था ,
जिस पर शिवरात्रि में पूरा गाँव
नतमस्तक रहता था , उस दिन वो
साक्षात् शिव का स्वरुप होता था
और उसकी सबसे ऊँची शाखा पर
जटायु का अपना घर होता था
पर अब वहां दोनों नहीं थे
मुंबई लौटने से एक दिन पहले
मैंने जटायु के वंशज से मिलने का
आख़िरी प्रयास किया और बढ़ चला
खेत के पास थोड़े से बचे बंजर टीले की ओर
आज वहां भीड़ थी , कौवे थे , कुत्ते थे ,
एक दो सियार भी दूर मडराते दिखे
पर वे नहीं थे जिनसे मैं
मिलने की आस में गया था
मैं टीले से थोड़ी दूर खड़ा
लाश के पास कौवों और कुत्तों की
नूरा - कुश्ती देख रहा था कि
तभी मेरे सिर के ठीक ऊपर से
हरहराते हुए कुछ बड़े डैनें गुजरे
और टीले की सबसे ऊँची जगह पर
चारों दिशाओं में गर्दन घुमाते हुए
चहलकदमी करने लगे,
उन्हें देख , मैं उनकी तरफ लपका ,
वे मुझे देख दो - चार कदम पीछे हुए
मैं रुक गया , उनके कदम भी रुक गये
मैंने अभिवादन की मुद्रा में हाथ जोड़ा
और धीरे से एक पग आगे बढ़ाया
उनके सबसे वरिष्ठ सदस्य ने
गर्दन हिलाकर अभिवादन स्वीकार किया
मुझमें थोड़ी हिम्मत आयी,
मैं एक पग और बढ़ा , वे भी मेरी ओर बढ़े
मैंने कहा मैं आप से मिलने आया हूँ .
जटायु के वंशज एक साथ हँस पड़े
मुझे थोड़ी लज्जा महसूस हुई.
मेरा लज्जित चेहरा उन्होंने शायद पढ़ लिया ,
गिद्धराज आगे बढ़े और गर्दन ऊँची करते हुए बोले-
बोलिए क्यों मिलना चाहते है आप मुझसे -
हमें भी उत्सुकता है कि पहली बार
कोई मनुष्य हमसे मिलने आया है
मैंने तपाक से उत्साह बस बिना सोचे
प्रश्न के अंदाज में पूंछा - आप ने हमारे गाँव को क्यों त्याग दिया ?
गिद्धराज ने गम्भीर होकर कहा -
आप हमारा मजाक उड़ाने आये हैं या दर्द कुरेदने
हमने गाँव का त्याग नहीं किया
बल्कि हमें गाँव ने त्याग दिया
हमारी जीविका के हर साधन को नष्ट कर दिया
मैं चुपचाप सुनता रहा , बीच में एकाध बार
कौवे और कुत्ते ध्यान भंग करते
मैंने अपना थोड़ा ज्ञान बघारा और कहा-
विज्ञान ने बड़ी तरक्की कर ली है
सरकार और विज्ञानी मिलकर गिद्धों को बचायेंगे
सरकार आप की कम होती जनसंख्या पर चिंतित है
आप हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर हैं
गिद्धराज पहली बार ठठाकर हँसे -
बोले अब समझ में आया - तुम क्यों मिलने आये
या तो तुम बेवकूफ आदमी हो या कवि
वरना ऐसी बात नहीं करते , हमें तुमसे सम्वेदना है .
हमारी ये दशा विज्ञान और सरकार की ही देन है
मैं थोड़ा झेंपते हुए बोला - वो कैसे ?
विज्ञान ने ही लोगों को नास्तिक बनाया
वरना बूढा पीपल क्यों कटता
पहले लोग कहते थे पीपल के पेड़ में
भगवान शिव रहते हैं , काटने से पाप लगेगा
वो भाव हटते ही बूढा पीपल मार दिया गया
अचानक एक शाम जब मैं घर लौटा
तो बूढा पीपल अंग - भंग पड़ा था
और हमारा घर तिनकों में इधर उधर बिखरा था
विज्ञान ने बैलों को बेरोजगार किया .
बूढ़ी गाय अब कसाई तक जाने लगी .
हमारा भोजन भी हड़प लिया .
भैंसों और विदेशी वर्णशंकर गायों को खाकर
हमारे न जाने कितने साथी , बन्धु - बांधव
असमय मृत्यु को प्राप्त हो गये
मैंने साहस कर पूंछा ऐसा क्यों ?
गिद्धराज ने आंसू पोंछते हुए कहा-
उनके शरीर में जहर भरा था ,
क्योंकि उनके मरने से पूर्व
ज्यादा दूध, ज्यादा गबरू, ज्यादा उम्र के लिए
उनके बदन में सुई से जहर भर दिया गया.
ये सरकार और विज्ञान ने ही मिलकर किया
जिसे हमारे सीधे -सादे पूर्वजों ने खा लिया
अब गाय माँ, बैल नन्दी,
पीपल शिव और बरगद विष्णु नहीं रहे
और हम जटायु नहीं रहे
अब विज्ञान और सरकार की दृष्टि में
वो जानवर और पेड़ हैं और हम बदसूरत पक्षी
मैं निशब्द था, आखों में गर्म जल था,
जटायु के वंशज से मिलना एक नया मर्मान्तक अनुभव था
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