घृणित राजनीति में मौत पर नेताओं के अलग - अलग सियासी पैमाने
नेताओं और नेतागिरी से जितना देश को फायदा नहीं हुआ उससे ज्यादा नुकसान हुआ है और आगे भी नुक्सान होता रहेगा. यदि भारतीय नहीं सुधारे. क्योंकि भारतीय ही वोट डालते हैं . सच्चे नेता एक ही थे सुभाष चन्द्र जी , उनके साथ नेताओं ने क्या किया बताने की आवश्यकता नहीं है ...उनकी मौत को गिरवी रखकर आज़ादी का अनुबंध बना. नेताओं ने ही देश के टुकड़े किये. क्रांतिकारियों ने देश के लिए लहू दिया और नेता देश का लहू पी रहे हैं .खैर आज - कल रोहित वेमुला के विषय पर राष्ट्रव्यापी कुचर्चा व राजनीतिक कुकृत्य हो रहा है . हमने आजतक जो थोड़ा - बहुत पढ़ा है वो ये कि आत्महत्या करना पाप है.आत्महत्या का प्रयास करना कानूनन जुर्म है , कई बार उपदेश स्वरुप सूना हूँ. आत्महत्या कायरता है.आत्महत्या बुजदिल या कायर करते हैं. और फिर कानपुर आई आई टी में, मुम्बई में और देश के कई संस्थानों में छात्रों ने आत्महत्या की तब क्या ये राजनेता ससुराल गये थे .
दूसरी बात याकूब मेनन जिसे देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने दोषी पाया. उसका विरोध इसी वेमुला ने किया. बाकायदा प्रदर्शन किया और नारा दिया हर घर में याकूब होगा .अगस्त [2015] महीने में याकूब मेमन की फांसी के खिलाफ अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के बैनर तले विरोध-प्रदर्शन किया था रोहित वेमुला और उसके दोस्त याकूब मेमन के लिए नमाज़ पढ़ रहे थे. फांसी के खिलाफ अपनी बात रखना गलत नहीं है, इस तरह की बहस होना भी ठीक है लेकिन उनका 'हर घर में याकूब होगा' जैसे नारे लगाना क्या उचित थी.' खैर राहुल वेमुला को १२ मार्च, १९९३ को मुंबई में हुए सीरियल बम ब्लास्ट क्या याद था .उस समय तो इतना छोटा और नासमझ रहा होगा [लगभग 5 वर्ष] कि उसे पता ही नहीं आतंक क्या है? और मौत क्या है? इस आतंकी घटना में एक दर्जन से अधिक जगहों पर धमाके हुए थे। इनमें 257 मासूम लोग मारे गए थे और700 से अधिक बेगुनाह घायल हुए थे। इन मृतकों के परिजनों की संवेदना का अंदाज़ा उसे था कि जिस याकूब की वो तरफदारी रहा है उसके हाथ ही नहीं पूरा शरीर 257 लोगों के खून से सना है.एक नौजवान शोधार्थी इतना असंवेदनशील , निष्ठुर और 'मुजफ्फरनगर बाकी है' जैसी सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाली फिल्म का विरोध के बावजूद प्रदर्शन करवाने की जिद. क्या यही पढ़ने विश्वविद्यालय जाते हैं. ऐसी पढाई और ऐसा शोध..... उल्टा आसुंओं और संवेदनाओं का राजनीतिक ज्वार ..... बड़े नाम वाले पर तुच्छ नेता और तुच्छ स्तर के राजनीतिक बयान और बिचौलिये चैनल भी खूब चिल्लाये गला फाड़ कर. एक नेता ने राहुल वेमुला की आत्महत्या की तुलना गांधी जी की हत्या से कर दी. एक मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को दलित विरोधी बता दिया जबकि बाद में पता चला कि वेमुला ओबीसी है .
मेरी सम्वेदना ह्रदय से राहुल वेमुला की माता जी के साथ है . क्योंकि जिसने आत्महत्या की वो तो मुक्त हो गया पर उस माँ का क्या ? उसका पति भी नहीं है जिसकी सारी उम्मीदे उस राहुल से थी जो अब नहीं है .जीवन की सारी पूंजी इस उम्मीद पर लगा दी कि एक दिन राहुल उसका सहारा बनेगा. पर दुखद ये हो न सका,पर नेताओं का भला जरुर हो गया .दलाल चैनलों और चरित्रहीन नेताओं को देखिये उन्होंने आत्महत्या को बाकायदा जाति का जामा पहना दिया. दलित का जामा.....
क्या यदि वो दलित नहीं होता तो उसकी मौत का कोई मूल्य नहीं होता ? इस तरह की चीजें आगे चलकर देश को गृहयुद्ध की तरफ अग्रसर करेंगी. कल क्या पता जैन छात्र , मुस्लिम छात्र, इसाई छात्र, सिख छात्र, सवर्ण छात्र का चलन शुरू हो जाय .खैर बाद में पता चला कि वो दलित ही नहीं था ओबीसी था. पूरी मीडिया सिर्फ दलित पर केन्द्रित थी पत्रकारिता उसके मानदंड मर्यादा गई भाड़ में कुछ मीडिया के शीर्षक देखिये
खुदकुशी करने से पहले दलित छात्र रोहित वेमुला के अंतिम शब्द
दलित शोधार्थी रोहित वेमुला की आत्महत्या दरअसल 'हत्या' है?
दलित एक्टिविस्ट रोहित वेमुला की मौत, सामाजिक संगठनों में आक्रोश
रोहित वेमुला के दलित होने पर उठे सवाल
दलित नहीं था रोहित वेमुला!, मैरिट से हुआ था हैदराबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला
वेमुला आत्महत्या: छात्रों की भूख हड़ताल में शामिल हुए राहुल गांधी
पूर्व जज करेंगे रोहित वेमुला आत्महत्या मामले की जांच
- नवभारत टाइम्स
रोहित वेमुला के बर्थडे को 'ज्वॉइंट एक्शन कमेटी' सामाजिक न्याय के दिन के तौर पर मना रही है
दलित छात्र रोहित वेमुला खुदकुशी मामले से जुड़ी 5 बातें
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दलित शोधार्थी रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले को महात्मा गांधी की हत्या जैसा करार दिया
रोहित वेमुला खुदकुशी मामलाः छात्रों से मिले केजरीवाल, कहा केंद्र सरकार दलित विरोधी है.
पिछ्ले दिनों रोहित वेमुला आत्महत्या मामले में मुंबई में भी विरोध प्रदर्शन हुआ था मुम्बई से प्रकाशित नवभारत टाइम्स ने प्रमुखता से प्रकाशित भी किया था अब मैं 'महाराष्ट्र के रायगढ़ के मुरुड़ बीच पर समंदर में डूबने से 14 बच्चों की हुई मौत पर बात करना चाहूँगा जो अभी की घटना है पुणे के आबिदा इनामदार कॉलेज के 130 स्टूडेंट्स रायगढ़ के मुरुड जंजीरा बीच पर पिकनिक मनाने के लिए गए थे। इस ग्रुप में तकरीबन 70 लड़के और 60 लड़कियां थीं। इनमें से तकरीबन 20 छात्र -छात्राएं समुद्र किनारे तैर रहे थे और अचानक तेज लहरों की चपेट में आ गए। जिसमें 14 ह्रदय विदारक मौत हो गयी. ये भी छात्र थे देश के भविष्य बनने से पहले भूत हो गए. इन परिवारों का क्या .... इनके दुःख कौन बांटेगा ? नेता मीडिया अब क्यों गला नही फाड़ रहे हैं. क्या इन मौतों की कोई कीमत नहीं .इसका जिम्मेदार कौन ? इसी का जवाब मांगने जब पीड़ित परिवार वाले आबिदा इनामदार कॉलेज के ट्रष्टी पी . ये. इनामदार गये तो उन्होंने बदतमीज़ी करके बहर निकलवा दिया. इन्हें कौन मुआवजा देगा. यहाँ कोई गांधी या केजरी क्यों नहीं पहुंचा. इनकी मौत को किस दिवस के रूप में मनाया जायेगा. ये कोई आन्दोंलन्करी वेमुला नहीं थे इनमें वेमुला की तरह राजनीतिक चेतना नहीं थे ये खालिस छात्र थे. ये दलित नहीं सिर्फ भारतीय थे क्या यही इनका गुनाह था या इनकी मौत राजनीतिक रोटियां पक नहीं सकती थी. क्या मुम्बई में इनकी मौत के विरोध में कोई प्रदर्शन होगा.... कोई नवभारत टाइम्स इन 14 मासूमों की मौत पर सवाल खड़ा करेगा.....
मुझे किसी से उम्मीद नही है उम्मीद है तो आम आदमी और देश में बाघ जितने बचे हुए पत्रकारों से...... मीडिया से नहीं .... सिर्फ पत्रकारों से ...
नेताओं और नेतागिरी से जितना देश को फायदा नहीं हुआ उससे ज्यादा नुकसान हुआ है और आगे भी नुक्सान होता रहेगा. यदि भारतीय नहीं सुधारे. क्योंकि भारतीय ही वोट डालते हैं . सच्चे नेता एक ही थे सुभाष चन्द्र जी , उनके साथ नेताओं ने क्या किया बताने की आवश्यकता नहीं है ...उनकी मौत को गिरवी रखकर आज़ादी का अनुबंध बना. नेताओं ने ही देश के टुकड़े किये. क्रांतिकारियों ने देश के लिए लहू दिया और नेता देश का लहू पी रहे हैं .खैर आज - कल रोहित वेमुला के विषय पर राष्ट्रव्यापी कुचर्चा व राजनीतिक कुकृत्य हो रहा है . हमने आजतक जो थोड़ा - बहुत पढ़ा है वो ये कि आत्महत्या करना पाप है.आत्महत्या का प्रयास करना कानूनन जुर्म है , कई बार उपदेश स्वरुप सूना हूँ. आत्महत्या कायरता है.आत्महत्या बुजदिल या कायर करते हैं. और फिर कानपुर आई आई टी में, मुम्बई में और देश के कई संस्थानों में छात्रों ने आत्महत्या की तब क्या ये राजनेता ससुराल गये थे .
दूसरी बात याकूब मेनन जिसे देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने दोषी पाया. उसका विरोध इसी वेमुला ने किया. बाकायदा प्रदर्शन किया और नारा दिया हर घर में याकूब होगा .अगस्त [2015] महीने में याकूब मेमन की फांसी के खिलाफ अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के बैनर तले विरोध-प्रदर्शन किया था रोहित वेमुला और उसके दोस्त याकूब मेमन के लिए नमाज़ पढ़ रहे थे. फांसी के खिलाफ अपनी बात रखना गलत नहीं है, इस तरह की बहस होना भी ठीक है लेकिन उनका 'हर घर में याकूब होगा' जैसे नारे लगाना क्या उचित थी.' खैर राहुल वेमुला को १२ मार्च, १९९३ को मुंबई में हुए सीरियल बम ब्लास्ट क्या याद था .उस समय तो इतना छोटा और नासमझ रहा होगा [लगभग 5 वर्ष] कि उसे पता ही नहीं आतंक क्या है? और मौत क्या है? इस आतंकी घटना में एक दर्जन से अधिक जगहों पर धमाके हुए थे। इनमें 257 मासूम लोग मारे गए थे और700 से अधिक बेगुनाह घायल हुए थे। इन मृतकों के परिजनों की संवेदना का अंदाज़ा उसे था कि जिस याकूब की वो तरफदारी रहा है उसके हाथ ही नहीं पूरा शरीर 257 लोगों के खून से सना है.एक नौजवान शोधार्थी इतना असंवेदनशील , निष्ठुर और 'मुजफ्फरनगर बाकी है' जैसी सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाली फिल्म का विरोध के बावजूद प्रदर्शन करवाने की जिद. क्या यही पढ़ने विश्वविद्यालय जाते हैं. ऐसी पढाई और ऐसा शोध..... उल्टा आसुंओं और संवेदनाओं का राजनीतिक ज्वार ..... बड़े नाम वाले पर तुच्छ नेता और तुच्छ स्तर के राजनीतिक बयान और बिचौलिये चैनल भी खूब चिल्लाये गला फाड़ कर. एक नेता ने राहुल वेमुला की आत्महत्या की तुलना गांधी जी की हत्या से कर दी. एक मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को दलित विरोधी बता दिया जबकि बाद में पता चला कि वेमुला ओबीसी है .
मेरी सम्वेदना ह्रदय से राहुल वेमुला की माता जी के साथ है . क्योंकि जिसने आत्महत्या की वो तो मुक्त हो गया पर उस माँ का क्या ? उसका पति भी नहीं है जिसकी सारी उम्मीदे उस राहुल से थी जो अब नहीं है .जीवन की सारी पूंजी इस उम्मीद पर लगा दी कि एक दिन राहुल उसका सहारा बनेगा. पर दुखद ये हो न सका,पर नेताओं का भला जरुर हो गया .दलाल चैनलों और चरित्रहीन नेताओं को देखिये उन्होंने आत्महत्या को बाकायदा जाति का जामा पहना दिया. दलित का जामा.....
क्या यदि वो दलित नहीं होता तो उसकी मौत का कोई मूल्य नहीं होता ? इस तरह की चीजें आगे चलकर देश को गृहयुद्ध की तरफ अग्रसर करेंगी. कल क्या पता जैन छात्र , मुस्लिम छात्र, इसाई छात्र, सिख छात्र, सवर्ण छात्र का चलन शुरू हो जाय .खैर बाद में पता चला कि वो दलित ही नहीं था ओबीसी था. पूरी मीडिया सिर्फ दलित पर केन्द्रित थी पत्रकारिता उसके मानदंड मर्यादा गई भाड़ में कुछ मीडिया के शीर्षक देखिये
खुदकुशी करने से पहले दलित छात्र रोहित वेमुला के अंतिम शब्द
दलित शोधार्थी रोहित वेमुला की आत्महत्या दरअसल 'हत्या' है?
दलित एक्टिविस्ट रोहित वेमुला की मौत, सामाजिक संगठनों में आक्रोश
रोहित वेमुला के दलित होने पर उठे सवाल
दलित नहीं था रोहित वेमुला!, मैरिट से हुआ था हैदराबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला
वेमुला आत्महत्या: छात्रों की भूख हड़ताल में शामिल हुए राहुल गांधी
पूर्व जज करेंगे रोहित वेमुला आत्महत्या मामले की जांच
- नवभारत टाइम्स
रोहित वेमुला के बर्थडे को 'ज्वॉइंट एक्शन कमेटी' सामाजिक न्याय के दिन के तौर पर मना रही है
दलित छात्र रोहित वेमुला खुदकुशी मामले से जुड़ी 5 बातें
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दलित शोधार्थी रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले को महात्मा गांधी की हत्या जैसा करार दिया
रोहित वेमुला खुदकुशी मामलाः छात्रों से मिले केजरीवाल, कहा केंद्र सरकार दलित विरोधी है.
पिछ्ले दिनों रोहित वेमुला आत्महत्या मामले में मुंबई में भी विरोध प्रदर्शन हुआ था मुम्बई से प्रकाशित नवभारत टाइम्स ने प्रमुखता से प्रकाशित भी किया था अब मैं 'महाराष्ट्र के रायगढ़ के मुरुड़ बीच पर समंदर में डूबने से 14 बच्चों की हुई मौत पर बात करना चाहूँगा जो अभी की घटना है पुणे के आबिदा इनामदार कॉलेज के 130 स्टूडेंट्स रायगढ़ के मुरुड जंजीरा बीच पर पिकनिक मनाने के लिए गए थे। इस ग्रुप में तकरीबन 70 लड़के और 60 लड़कियां थीं। इनमें से तकरीबन 20 छात्र -छात्राएं समुद्र किनारे तैर रहे थे और अचानक तेज लहरों की चपेट में आ गए। जिसमें 14 ह्रदय विदारक मौत हो गयी. ये भी छात्र थे देश के भविष्य बनने से पहले भूत हो गए. इन परिवारों का क्या .... इनके दुःख कौन बांटेगा ? नेता मीडिया अब क्यों गला नही फाड़ रहे हैं. क्या इन मौतों की कोई कीमत नहीं .इसका जिम्मेदार कौन ? इसी का जवाब मांगने जब पीड़ित परिवार वाले आबिदा इनामदार कॉलेज के ट्रष्टी पी . ये. इनामदार गये तो उन्होंने बदतमीज़ी करके बहर निकलवा दिया. इन्हें कौन मुआवजा देगा. यहाँ कोई गांधी या केजरी क्यों नहीं पहुंचा. इनकी मौत को किस दिवस के रूप में मनाया जायेगा. ये कोई आन्दोंलन्करी वेमुला नहीं थे इनमें वेमुला की तरह राजनीतिक चेतना नहीं थे ये खालिस छात्र थे. ये दलित नहीं सिर्फ भारतीय थे क्या यही इनका गुनाह था या इनकी मौत राजनीतिक रोटियां पक नहीं सकती थी. क्या मुम्बई में इनकी मौत के विरोध में कोई प्रदर्शन होगा.... कोई नवभारत टाइम्स इन 14 मासूमों की मौत पर सवाल खड़ा करेगा.....
मुझे किसी से उम्मीद नही है उम्मीद है तो आम आदमी और देश में बाघ जितने बचे हुए पत्रकारों से...... मीडिया से नहीं .... सिर्फ पत्रकारों से ...
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