चवन्नी का मेला

यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 9 नवंबर 2024

बात बात पर ( बाऊ जी के अस्वस्थ होने पर )



बात बात पर बैठे ही मैं कविता लिख देता था

हँसते – हँसते   दुर्लभ  प्रश्नों  के उत्तर देता था

वही  पवन  हूँ  आज  एक  ना  शब्द  फूटते हैं

बाऊ   के  संकेत  मात्र  से सब  कर  देता  था

 

हुआ समय  परिवर्तित  पूरा बुद्धू हो गया हूँ

मुझसे ही मैं विलग हुआ सा जैसे खो गया हूँ

बाऊ  जी मन में मुझको  सौ बार पुकारे होंगे

इसीलिये  परसों  से ही सौ बार मैं रो गया हूँ

 

शब्द साधना किया बहुत पर अर्थ कहीं रूठा है

इसी  एक  कारण  से  ही संबंध बहुत टूटा है

बहुत हुए अपमान आज तो मन अपमानित है

सम्बन्धों का शेष आज अंतिम घट भी फूटा है

 

आयेगा  फिर  काल  किंतु बाऊ जी ना होंगे

होगी  जय  जयकार किंतु  बाऊ जी ना होंगे

लौट के आयेंगे  भूले  सारे  शुभ चिंतक फिर

हम  चेहरे  पहचान के भी अनजान बने होंगे

 

धरा गोल है समय  लौट  के आयेगा इक दिन

फिर शब्दों का अर्चन  होगा आयेगा इक दिन

गायत्री   का   तेज   वेद  बन  फिर  से  फूटेगा

स्वागत हेतु अरुण रथ लेकर आयेगा इक दिन

 

पवन तिवारी

०९/११/२०२४

बाऊ जी को पीजीआई से स्वास्थ्य सेवा में असमर्थता जताने पर   


शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

प्रारब्ध


 

बचपन में  जो  पूर्व जन्म की कथा बताते थे

पूर्व जन्म  के  कर्मों  का  परिणाम बताते थे

जो विपत्ति दुःख, छल जितना भी झेल रहे थे वो

प्रारब्धों  का  किया धरा सब काम बताते थे

 

सुनते रहते थे हम अक्सर  समझ  नहीं पाते थे

जिज्ञासा  होती  थी  लेकिन प्रश्न न कर पाते थे

उनकी बातें सुनते, उनका  मुँह  देखा करते थे  

अपनी व्यथा कथा कहकर वह दुःख में सुख पाते थे

 

जब अपने संग हुए  छलों का उत्तर ना पाते थे

कष्ट की अवली लगी सदा वे दुःख पे दुःख पाते थे

आकुल मन जब गला दबाता छाती जलने लगती

एक  सहारा  केवल  तब  प्रारब्धों  पर  पाते थे

 

 आज समय के उसी काल में जब हम उलझे हैं

सुलझे - सुलझे  लगे  प्रश्न  पर  बहुधा  उलझे  हैं

तब जाकर प्रारब्ध शास्त्र का महत समझ आया

हम भी उसकी शरण गये अब जब जब उलझे हैं

 

विफलताओं   में  जीने  का  आधार  यही देता

दुःख को  सहने का  शसक्त आधार यही देता

पिछले जन्मों के हिसाब कुछ बाक़ी रह गये थे

यूँ   बहलाकर  जीने  का   आधार   यही   देता

 

पवन तिवारी

०६/११/२०२४    


सोमवार, 4 नवंबर 2024

जहाँ भी जिंदगी मिले उसे उठाते चलो



जहाँ  भी जिंदगी मिले उसे  उठाते चलो

स्नेहा उल्लास मिले लोगों में बढ़ाते चलो 

सुखों की आड़ में छुप के बहुत से दुख बैठे 

जो भी लालच के परिंदे मिले उड़ाते चलो 

जहां  भी जिंदगी  मिले  उसे उठाते चलो

 

लोग  आशा  का  पात्र लेके  रोज  घूम रहे 

किसी इक रोज ही  किसी की कहीं धूम रहे 

जिसे तुम अपना बड़प्पन समझ के फूल रहे 

वह तो बस स्वार्थ से है तुम्हरे चरण चूम रहे 

जिंदगी  की  मशाल को फक्त जलाते चलो 

जहाँ  भी  जिंदगी मिले  उसे  उठाते  चलो 

 

जिन्हें तुम  शत्रु समझते हो जिसे डरते हो 

जिनसे  बचने के कई ताम-झाम  करते हो 

उनसे बच जाओगे उनसे है नहीं डर उतना 

तुम्हें मारेंगे वहीं जिन पे दिल से मरते हो

जो भी लपटे हैं दुश्मनी की वो बुझाते चलो 

जहाँ  भी जिंदगी  मिले  उसे  उठने चलो

 

करते  कमजोर  सदा  तुमको तुम्हारे अपने 

जिन पर  विश्वास करते वो ही लूटते सपने 

जिनके उत्थान की खातिर किये बलिदान बहुत 

उनके  व्याख्यान  हैं अखबार  में लगे छपने 

लिए हो बोझ  जो  औरों का वो गिराते चलो 

जहाँ  भी  जिंदगी  मिले  उसे  उठाते  चलो 

 

पवन तिवारी 

04/11/2024


सोमवार, 28 अक्तूबर 2024

अपने सिद्धांत, ठसक सर पे लिए चलते हैं,



अपने सिद्धांत, ठसक

सर पे लिए चलते हैं,

और इस ज़िन्दगी में

रोज थोड़ा मरते हैं.

 

रोज़ हँसते हैं मुस्करा के

गले मिलते हैं,

और अंदर के घाव

रोज थोड़ा सिलते हैं.

 

आज दीवाली पे

मेरे घर में अंधेरा है भले,

मेरे अंदर कई चराग

कब से जलते हैं.

 

एक तन्हाई ये जो

रोज़ डाँटती है मुझे,

कितने लेखक इसी पे

मरते, मरते, मरते हैं.

 

यूँ ही घंटों से अकेले में

जो हूँ सोच रहा,

लोग सरेआम उसपे

रोज बात करते हैं.

 

मैंने अब तक जो जिया

वो क़िताब उम्दा है,

इसीलिये इ
से पढ़ने से

लोग डरते हैं.

 

मरोगे जब तुम्हारी

ज़िन्दगी बिकेगी बहुत,

पवन कोई जीवनी

कोई आत्मकथा कहते हैं.

 

पवन तिवारी

२८/१०/२०२४

(गोवत्स द्वादशी)    

 

बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

धान होती हैं बेटियाँ




बेटियाँ एक घर में

पैदा होती हैं और ,

एक उम्र होने पर

दूसरे घर में

रोप दी जाती हैं ;

ठीक धान की तरह !

सूखे वाले क्षेत्र में

लोग नहीं ब्याहते बेटियाँ ,

और लोग

नहीं रोपते धान !

आज कल कहीं भी

पड़ जाता है अकाल ,

सारा श्रम

दम तोड़ देता है !

लुटेरा इंद्र जैसे लूटा था

अहल्या को; आज भी

लूट ले रहा है ,

भरे दिन, दोपहरी ,

धान को, बेटियों को !

ओह, दिन दहाड़े

कोई है... जो दे सके शाप ;

उठा सके गोवर्धन !

 

पवन तिवारी

१८/०८/२०२१

परिष्करण ९/१०/२०२४

   

 

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024

दुनिया में बहुत कुछ भारी है



दुनिया में

बहुत कुछ भारी है,

किंतु, जब दिन कट जाता है

रात भी कट जाती है;

और कटती है उम्र

पर नहीं कटती जिंदगी!

सब कुछ चलते हुए

ठहरा लगता है,

बस ! वो भाव,

सबसे भारी होता है!

 

पवन तिवारी

०८/१०/२०२४

प्रतिरोध का आनंद


 

 

 

कोई पुराना परिचित

पुराना विरोधी

तुम्हें फूटी आँख भी

न देखने वाला,

अकस्मात देखकर

मुस्कराने लगे,

तुमसे मीठे स्वर में

करें संवाद,

तब समझ जाना

कोई बड़ा संकट

आने वाला है!

भागना मत;

परीक्षा देना,

अपने अनुभव, समझ,

धैर्य, सबको इकठ्ठा करना

और मुस्करा कर

करना सामना,

फिर देखना,

दोनों ओर

आनन्द होगा,

प्रतिरोध का आनन्द !   

रविवार, 6 अक्तूबर 2024

कितने दिन पर गीत लिखा हूँ



कितने दिन पर गीत लिखा हूँ 

जाने किसको मीत लिखा हूँ 

कुछ मीठा सा लिखना था पर 

जाने क्यों मैं तीत लिखा हूँ 


गर्मीं में भी शीत लिखा हूँ 

कैसी उल्टी रीत लिखा हूँ 

जीवन भर अक्सर हारा हूँ 

पर गीतों में जीत लिखा हूँ 


झुके हुओं को भीत लिखा हूँ 

अनजानों को हीत लिखा हूँ 

कवि अलबेले फक्कड़ होते

 कड़वों को भी प्रीत लिखा हूँ 


पवन तिवारी ०६/०९/२०२४

गुरुवार, 26 सितंबर 2024

अर्थ



बने हुओं को तोड़ रहा है

टूटों  के  ये  जोड़  रहा है

सबको ही आकर्षित करता

मुड़े हुओं को मोड़ रहा है

 

रिश्तों के तटबंध बनाये

गैरों   में    संबंध  बनाये

स्वाभिमान के शिखरों से भी

हँस करके अनुबंध बनाये

 

मित्रों में ये वैर करा दे

वैरी से मित्रता करा दे

जग के सबसे कठिन काम को

ये पहुँचे और यूँ करा दे

 

प्रेम कराये कलह कराये

रार  कराये  मार  कराये

इसकी जैसी जब मर्ज़ी हो

अपने मन की सदा कराये

 

जहाँ खड़ा हो वहीं नमस्ते

पैर छुएं सब हँसते - हँसते

अर्थ की महिमा सबसे न्यारी

साधू मंत्री  सभी हैं फँसते

 

पवन तिवारी

२७/०९/२०२४