बेटियाँ एक घर में
पैदा होती हैं और ,
एक उम्र होने पर
दूसरे घर में
रोप दी जाती हैं ;
ठीक धान की तरह !
सूखे वाले क्षेत्र में
लोग नहीं ब्याहते बेटियाँ ,
और लोग
नहीं रोपते धान !
आज कल कहीं भी
पड़ जाता है अकाल ,
सारा श्रम
दम तोड़ देता है !
लुटेरा इंद्र जैसे लूटा था
अहल्या को; आज भी
लूट ले रहा है ,
भरे दिन, दोपहरी ,
धान को, बेटियों को !
ओह, दिन दहाड़े
कोई है... जो दे सके शाप ;
उठा सके गोवर्धन !
पवन तिवारी
१८/०८/२०२१
परिष्करण ९/१०/२०२४
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