शहर में चौड़ी चिकनी सड़कें
गाँव में कंकड़ ढेला है.
गाँव उजड़ते बूढ़े रह गये
शहर में हर दिन मेला है
यह विस्थापन ठीक नहीं है.
बड़ा बुरा यह रेला है.
आओ आयु वेद को लौटें
नहीं ये अच्छा खेला है
किरकेट ने सब जगह घेर ली
गुल्ली डंडा गोल हुआ
टैक्टर ने फैक्चर कर डाला
रोल बैल का गोल हुआ
भासा को अंग्रेजी खा गयी
विद्यालय बस ढोल है
कान्वेंट ही उत्तम शिक्षा
खतरनाक यह खोल है.
फैशन ने संस्कृति को पटका
परिधानों संग झोल है
दूध दही माठा सब पिछड़े
शीतपेय का बोल है.
अन्न सभी जहरीले हो गये
वातावरण प्रदूषित है
नदी और तालाब का चेहरा
अंदर - बाहर दूषित है
यूँ ही यदि विकास होना है.
बिन विकास हम अच्छे हैं
बड़े हो गये आप लोग सब
मान लिए हम बच्चे हैं
ऐसी बुद्धि का क्या करना
जो मौलिकता नष्ट करे
ऐसी युक्ति हमें न चाहिए
जो जीवन को भ्रष्ट करें
पवन तिवारी
१२/०१/२०२४
सभ्यता के विकास रथ के चमचमाते भव्य पहियों के नीचे कुचली अंतिम साँसें लेती संस्कृतियों की कराह कौन सुन रहा?
जवाब देंहटाएंकुछ तो कीमत चुकानी ही पड़ेगी न आगे बढ़ते रहने की।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १६ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
अनेक धन्यवाद श्वेता जी
हटाएंशहर में चौड़ी चिकनी सड़कें
जवाब देंहटाएंगाँव में कंकड़ ढेला है.
गाँव उजड़ते बूढ़े रह गये
शहर में हर दिन मेला है.
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बहुत सुन्दर पंक्तियाँ 🙏
धन्यवाद हरीश जी
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील जी
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जवाब देंहटाएंवाह! शानदार सृजन!
आभार शुभा जी
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