जब से सुना नेह पर हूँ वक्तव्य
तुम्हारे
मेरा जो भी प्रिय था हैं सब
तुम पर हारे
अब भी अरुंधती सी दारायें
होती हैं
देख तुम्हें उर बोला तुम भी
धन्य हो प्यारे
कितनी है अनुरक्ति तुम्हें
कैसे बतलाऊँ
प्रथम प्रात प्रतिवासर
तुम्हरे दर्शन चाहूँ
पूर्ण वार इतने भर से ही
सुखद रहेगा
अभिलाषा इससे अतिरिक्त नहीं
कुछ पाऊं
प्रेमी हूँ ,कामांध नहीं,
घोषणा करूँ क्या
प्रेम किसन हैं, राधा मीरा और कहूँ क्या
जिन्हें कशिश काया में लगती
दूजे होंगे
मैं अंतः का अनुरागी हूँ
हृदय धरुं क्या
दर्शन भर से भक्त तृप्त हो
जाता है
इससे बड़ा प्रेम क्या कोई
पाता है
युगों-युगों तक लोग साधना
जप तप करते
सहज व्यक्ति बस सीता राम ही
गाता है
पवन तिवारी
३१/०५/२०२३