सुनों, आज इस तरह की
पहली और अंतिम बात
कहना चाहता हूँ.
अगर तुम अपने इस
व्यवहार में हमेशा के लिए
निरंतरता न रख सको तो
अभी सब कम कर दो,
ये जो तुम रोज फोन करती हो
ये जो तुम अक्सर मिलने आती
हो
ये जो हमेशा मेरे पास बैठती
हो
ये जो घंटो बतियाती हो
अचानक किसी दिन तुम
फोन करना कम कर दोगी
मिलना कम कर दोगी
मुझसे दूर बैठोगी और
दो
मिनट की बात करके कहोगी-
जरुरी काम है! और चली जाओगी
!
पता है तब मुझे तब बहुत
बुरा लगेगा
तुम्हें शायद नहीं पता बुरा
लगना
कितना बुरा होता है.?
शायद मर जाना उतना बुरा
नहीं होता
शायद इसलिए क्योंकि पिछली
बार
मैं मरने से बच गया था.
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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