तुमको देखा तर गया
लगा
कि नेह झर गया
जो
मनोज का था कार्य
दृष्टि
भर में कर गया
अहंकार डर गया
रिक्त
ह्रदय भर गया
प्रस्तर
पिघलने लगा
झरने के घर गया
राग
वाले दर गया
सारा मै जर गया
हो गया नवीन मैं
जैसे प्रेम वर गया
त्रास
क्षण में हर गया
भेद
नारी नर गया
रोम
तक प्रसन्न
हैं
प्रेम
के नगर गया
पवन
तिवारी
०८/०८/२०२१
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