यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 23 जून 2022

ज़िन्दगी रूठने की

ज़िन्दगी  रूठने  की   कसम   खा  चुकी

था लगा  हर्ष  की  भोर  भी  जा  चुकी

तुम्हरे आने की  जब  से  मिली  सूचना

फिर से अभिलाषा जीने की है आ चुकी

 

देखूँ  तुमको  तो ये उम्र  बढ़  जाती है

पीड़ा दब जाती है ख़ुशी चढ़ जाती है

प्रेम  सच  में  उमर  को  बढ़ा देता है

मौत पर ज़िंदगानी  को मढ़ जाती है

 

सारी  बेचैनियाँ  चैन  में  ढल गयीं

तुम जो आयी तो विकृतियाँ सब जल गयीं

प्रेम औषधि  है या कोई  वरदान है

मौत आयी कई बार पर टल  गयी

 

पवन तिवारी

१५/०९/२०२१   

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