ज़िन्दगी रूठने की कसम खा चुकी
था
लगा हर्ष की भोर भी जा चुकी
तुम्हरे
आने की जब से मिली सूचना
फिर
से अभिलाषा जीने की है आ चुकी
देखूँ तुमको तो ये उम्र बढ़ जाती है
पीड़ा
दब जाती है ख़ुशी चढ़ जाती है
प्रेम सच
में उमर को बढ़ा देता है
मौत
पर ज़िंदगानी को मढ़ जाती है
सारी बेचैनियाँ चैन में ढल गयीं
तुम
जो आयी तो विकृतियाँ सब जल गयीं
प्रेम
औषधि है या कोई वरदान है
मौत
आयी कई बार पर टल गयी
पवन
तिवारी
१५/०९/२०२१
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