हम अनायास थे दूर थे पास थे
जग
के ठुकराए खुद के बहुत पास थे
ठोकरों
से कला जीने की सीख ली
अंततः
ज़िन्दगी के बहुत
पास थे
तुम
अलग हो कहाँ से हो आये हुए
इतना
विश्वास कैसे कमाये हुए
सारे
हैं अजनबी फिर भी हो हँस रहे
कैसी
मिट्टी के हो
तुम बनाये हुए
तुम
हो आये हुए
या बुलाये हुए
जब
से आये हो तुम ही हो छाये हुए
इससे
पहले तुम्हें मैंने देखा
नहीं
प्रेम
के मारे हो
या
भगाए हुए
तुम
मिली तो अपरिचित कहाँ मैं रहा
मेरी
आभा को केवल
है तुमने गहा
प्रेम
की मारी तुम
मैं सताया हुआ
एक हो जायें हमने
बहुत है सहा
पवन
तिवारी
१५/०९/२०२१
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