अबकी
पीड़ित मैं नहीं हूँ समय
है
अबकी
हर्षित तात पीड़ित तनय है
समय
ही उलझा समय के खेल में
भाग्य
खुद ही बंद अपनी जेल में
प्रकृति
अपनी माया में ही भ्रमित है
अपने
ही शस्त्रों से विघटित दमित है
कल
के शासक आज बेचारे
हुए
जो विजेता थे हैं अब हारे
हुए
काल
को महाकाल शिव सा मिल गया
पुष्प
से कुछ अधिक कंटक खिल गया
सूर्य
को भी दे दिया अवकाश है
इक उजाला आज सबके
पास है
इसलिए
अब सहज ही व्यवहार हो
सब बराबर हैं ये कारोबार हो
जिन्दगी
केवल तभी तक ज़िन्दगी
जब
तलक इक दूजे के प्रति बंदगी
पवन
तिवारी
०४/०८/
२०२१
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