यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 9 जून 2022

स्नेह की सरिता

स्नेह की सरिता सूख रही है

मानवता  अब  पूछ रही है

अनाचार छल व्याप्त हुए क्यों

पावनता क्यों  रूठ रही है

 

संगति  साझी  टूट  रही है

पीढ़ी सब कुछ बूझ रही है

करती है फिर भी अनदेखा

परम्परा  भी  छूट  रही है

 

एकल अब  परिवार  हो  रहे

स्वारथ में अपनों को खो रहे

स्वतंत्रता कुछ कम लगती है

स्वच्छन्दता के घर में सो रहे

 

लोग हैं धन के जाल  बो रहे

रिश्तों  से  हैं  हाथ  धो रहे  

सारे  खुद  को  समझें राजा

अहंकार  का  ताज़  ढो  रहे

 

पवन तिवारी

१५/०८/२०२१ 

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