प्रेम
की तलाश में
गँवा दी उम्र
आस में
दिवस
तो भटकनों में था थकान पूरी रात में
मैंने
देखा प्रेम में कि हर्ष से अधिक विशाद
प्रेम
में छले हुए
भी प्रेम की तलाश
में
प्रेम
एक माया है
कला है या
कि हर्ष है
इसको
समझने में लगा
कई – कई वर्ष है
क्षेत्रफल
में जो भी इसकी आता है माया के
उसको
लगे जीवन का
प्रेम ही उत्कर्ष है
सब
कुछ समझ कर भी कुछ ना समझते हैं
लोग
प्रेम जाल में
हँसते हुए फँसते
हैं
इसने
देवर्षि ब्रह्मर्षि
को
छल लिया
लोग
इसकी बस्ती में खुद ही आ के बसते हैं
आरम्भ
में
हर्ष
आगे फिर प्रताड़ना
अनचाही
बातों को इक तरफा मानना
और
फिर विवाद और दूरियों का बढ़ जाना
होता
भयंकर विशाद से
फिर सामना
पवन
तिवारी
१४/०८/२०२१
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