यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 22 जून 2022

घने - घने जरा

घने - घने जरा कृष्ण से बादल

जरा – जरा  हल्के  से  काजल

सर पर लिए  टोकरी  जल की

धरा  की  खटकाते  हैं  साँकल

इन्हें  वायु  का  संग  मिले तो

दूर  देश   हो    आते   बादल

 

टिपटिप  रिमझिम ये गाते हैं

अम्बर  पर  जब  ये  छाते हैं

आहट  पहले  से  लग  जाती

दल बल  संग  जब ये आते हैं

मौसम  में  यौवन भर जाता

बन- ठनकर जब आते बादल

 

दामिनी प्रेम  से डांट लगाती

कभी - कभी प्रचंड धमकाती

फिर  भी  ये   पक्के   प्रेमी  हैं

रूह धरा से मिल ही  जाती

धरती  जल  पाकर  के  झूमें

धरा पे जब झर जाते बादल  

 

पवन तिवारी

०३/०९/२०२१

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