यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 16 जून 2022

बाहर – बाहर घूम आये

बाहर – बाहर  घूम  आये

पर्वत  जंगल   चूम  आये

लौट रहे अब अपने अंदर

हिय के मौसम झूम आये

 

भटक   रहे  ज्यों  बंदर थे

प्यासे   हुए   समंदर   थे

जो भी बाहर खोज रहे थे

वो  सब    मेरे   अंदर  थे

 

आँख  भी  होकर अंधे थे

स्वार्थ  में  हो गये गंदे थे

मन  की  भी आँखे होतीं

कितने    भोले   बंदे  थे

 

अपने अंदर झाँक सको तो

निज को निज से आँक सको तो

जीवन हर्ष भरा होगा फिर

स्व को स्व ही हाँक सको तो

 

पवन तिवारी

१९/०८/२०२१

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