सुबह
सुबह प्यारी लगती है नैनों को ये धूप
सच
पूछो तो जैसे लगती जग भर की ये भूप
इसका
कोई रूप नहीं है ना कोई इसका रूप
फिर
भी प्रिय लगता है तेरा कल्पित सुनहरा रूप
इसके
आ जाने से होता रोशन
गहरा कूप
और अन्धेरा हो जाता
है सबसे पहले चुप
सीदी
सच्ची धूप सैकड़ों रोगों की औषधि है
इसके
खाने से बल बढ़ता जैसे खाकर
तोप
सरिता
और सरोवर को भी प्यारी लगती धूप
फसलों
का भी रूप निरखता पाकर प्यारी धूप
धूप बिना
धरती ये सूनी धूप बिना आकाश
पूरे जग
को लाड़ लड़ाती जीवनदायी धूप
पवन
तिवारी
०२/०५/२०२१
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