यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 6 मई 2022

सुबह सुबह प्यारी लगती है

सुबह सुबह प्यारी लगती है नैनों को ये धूप

सच पूछो तो जैसे लगती जग भर की ये भूप

इसका कोई रूप नहीं है ना कोई इसका रूप

फिर भी प्रिय लगता है तेरा कल्पित सुनहरा रूप  

 

इसके   जाने से  होता  रोशन  गहरा कूप

और  अन्धेरा  हो  जाता  है सबसे  पहले चुप

सीदी  सच्ची  धूप सैकड़ों रोगों  की औषधि है 

इसके खाने से  बल  बढ़ता  जैसे  खाकर तोप

 

सरिता और सरोवर को भी प्यारी लगती धूप

फसलों का भी रूप निरखता पाकर प्यारी धूप

धूप  बिना  धरती  ये सूनी  धूप बिना आकाश

पूरे  जग   को  लाड़  लड़ाती जीवनदायी  धूप

 

पवन तिवारी

०२/०५/२०२१

 

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