यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 6 मई 2022

बाहर उमस है और

बाहर उमस है और उमस  ज़िन्दगी में भी

खोट थोड़ी - थोड़ी  सी  है  ज़िंदगी में भी

सबके अलग म्यार हैं और परवरिश भी है

कुछ लोग खुशी  पाते  ख़ूब  गंदगी  में भी

 

कहने  को  चार  रंग हैं पर  रंग  हैं हजार

आने को तो आ जाती है सावन के बिन बहार

कुछ भी कहीं कभी भी हो सकता सहज है

किस्मत अगर अच्छी है तो जंगल में आहार

 

बस में तुम्हारे कुछ नहीं  बस करते जाना है

कहता है कर्म कुछ भी हो बस बढ़ते जाना है

स्थायी   शान्ति   के   लिए  है   युद्ध  जरुरी  

सो सबसे बड़ा  धर्म  ये  कि  लड़ते  जाना  है

 

परिवेश  करे  निश्चित  हिंसा   या  अहिंसा

राम   युधिष्ठिर  ने  क्या  की   नहीं  हिंसा

जब खुद की जान पे आये तो क्या करे इंसा

जपना  बहुत  आसान  है  ये  मन्त्र अहिंसा

 

 

पवन तिवारी

०१/०५/२०२१  

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