बाहर
उमस है और उमस ज़िन्दगी में भी
खोट
थोड़ी - थोड़ी सी है ज़िंदगी में भी
सबके
अलग म्यार हैं और परवरिश भी है
कुछ
लोग खुशी पाते ख़ूब गंदगी
में भी
कहने
को चार रंग
हैं पर रंग हैं हजार
आने
को तो आ जाती है सावन के बिन बहार
कुछ
भी कहीं कभी भी हो सकता सहज है
किस्मत
अगर अच्छी है तो जंगल में आहार
बस
में तुम्हारे कुछ नहीं बस करते जाना है
कहता
है कर्म कुछ भी हो बस बढ़ते जाना है
स्थायी शान्ति
के लिए है
युद्ध जरुरी
सो
सबसे बड़ा धर्म ये
कि लड़ते जाना
है
परिवेश करे
निश्चित हिंसा या
अहिंसा
राम युधिष्ठिर
ने क्या की
नहीं हिंसा
जब
खुद की जान पे आये तो क्या करे इंसा
जपना बहुत
आसान है ये
मन्त्र अहिंसा
पवन
तिवारी
०१/०५/२०२१
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