राह
छोटी है पतन की ज़िंदगी तो है जतन की
बातें
इतनी हैं हो रही लाज मुश्किल है कथन की
खोज
है सबको रतन की चाह है सबको गगन की
सबको
अपनी ही पड़ी है राह सब देखें ठगन की
मिट
रही गरिमा सदन की चर्चा धूमिल है गबन की
सब प्रपंचों में लगे हैं धुन है सत्ता
के चखन की
भूमिका
इसमें बदन की ख़ूब चलती है मदन की
स्वार्थ
हावी है इस तरह साख़ ख़तरे में वतन की
नहीं
मर्यादा वचन की शील टूटी है बटन की
अब
है नैतिकता किताबी कौन सुनता है पवन की
पवन
तिवारी
१६/०७/२०२१
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