कितनों की मैं मौत सुन रोया बहुत था
ऐसा
लगता जैसे कुछ खोया बहुत था
तुम
मरे तो आँख तक ना नम हुई
लोग
कहते रिश्ता तुमसे कुछ बहुत था
याद
आया वो समय दुःख का बहुत था
तुमने ही
माँ को मेरे मारा बहुत था
बहन
को भी खींचकर मारा था तुमने
आँसू
डर तुमने दिया जो कि बहुत था
फूस
छप्पर के थे फिर भी खुश बहुत था
रुखा
सूखा के भी घर खुश बहुत था
तुमसे
ये सुख भी नहीं देखा गया
था
छीना
था बचपन नहीं ये क्या बहुत था
रिश्ते
में यूँ दर्द पाया
भी बहुत था
वैर
का जो बीज
बोया वो बहुत था
अब मरे तो लोग कहते थे
तुम्हारे
मुँह
से निकला उतना रिश्ता ही बहुत था
पवन
तिवारी
३०/०४/२०२१
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