बाद
वर्षों के कल मैंने देखा तुम्हें
मंच
से ही जरा सा परेखा
तुम्हें
मेरी
कविता पे जब तालियाँ गूँजती
थी
रही कोस मस्तक की रेखा तुम्हें
इतने
दिन बाद जो दृष्टि ने देखा कल
मंच
से ही कहा हिय ने चल पास चल
मेरी
कविता पे तब ही बजी तालियाँ
तुम्हरे
आनन पे उभरे हुए स्वेद जल
तुम्हरे
साथी के चेहरे पे मुस्कान थी
मेरी कविता
भी छेड़े हुए तान थी
सारे
श्रोताओं का मुझपे अनुराग था
एक केवल
तुम्हीं बस परेशान थी
प्रेम
को छोड़कर अर्थ तुमने चुना
छल
का बारीक़ का जाल तुमने बुना
देख
तुमको परेशां है
दुःख हो रहा
काश
मेरी तरह होती दिल का सुना
पवन
तिवारी
०७/०७/२०२१
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