तुम
लोगों को नहीं
तुम्हारा नैन तोलता है
तुमसे
अधिक तुम्हारा अक्सर मौन बोलता है
काया
की क्या करूँ प्रशंसा अद्भुतत है व्यक्तित्त्व
यूँ
ही नहीं देख कर तुमको मन ये डोलता है
स्वप्न
भी तुमसे स्वप्न में आकर क्रीड़ा करता है
किन्तु सम्भल करता थोड़ा - थोड़ा डरता है
मिलता
हूँ मैं स्वप्न में फिर भी दिन बन जाता है
वहाँ
भी मर्यादा रखती हो नेह भी झरता है
ऐसा
साथी मिलने पर ही जीवन बनता है
कैसा
भी संकट आये मन,
मन से तनता है
ऐसे
में यदि प्रेम मिले तो,दुर्गम भी असान लगे
दुःख
आये तो ख़ुशी
ख़ुशी भी उससे ठनता है
पवन
तिवारी
०९/०७/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें